भाद्रपद महीने की शुक्लपक्ष की द्वादशी को वामन द्वादशी Vamana Dwadashi Vrat कहते है। यह द्वादशी प्रती वर्ष मनाई जाती है। इस बार वामन जयंती 18 सितम्बर 2021 शनिवार की है। इस शुभ दिन पर भगवान विष्णु जी की पूजा-अर्चना की जाती है। तथा औरते इस दिन अपने परिवार की सुख-शांति व धन वैभव बनाऐ रखने के लिए वामन भगवान (विष्णु) का व्रत रखते है वेदो, पुराणों व शास्त्रो में वामन भगवान को विष्णु जी का 5वा अवतार माना गया है। इस दिन देश के सभी मंदिरो में भगवान विष्णु जी या वामन भगवान कि पूजा का बहुत बड़ा आयोजन किया जाता है। जब-जब धरती पर पाप बहुत ज्यादा बड़े है तब-तब भगवन ने अवतार लेकर पुन: धर्म की स्थापन की है। ऐसे में अगर आप भी वामन द्वादशी का व्रत रखते है तो इस आर्टिकल में माध्यम से बताई हुई व्रत कथा व पूजा विधि को पढ़कर या सुनकर अपना व्रत पूर्ण कर सकते हो। पोस्ट के अन्त तक बने रहे।
वामन द्वादशी का शुभ मुहूर्म
इस बार वामन द्वादशी 18 सितम्बर 2021 को है। किन्तु इसका शुभ मुहूर्म की शुरूआत 17 सितम्बर 2021 को प्रात:काल 08 बजकर 07 मिनट पर शुरू हो जाएगी। तथा 18 सितम्बर 2021 प्रात: 06 बजकर 54 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। आप इसी शुभ मुहूर्त के बीच में आप अपना वामन द्वादशी का व्रत पूर्ण कर सकते है। Vamana Dwadashi Vrat
वामन व्रत पूजा विधि
- वामन द्वादशी का व्रत रखने वाले स्त्री व पुरूष को प्रात:काल ब्रह्माचार्य मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर पीले रंग के वस्त्र पहने।
- इसके बाद भगवान सूर्य को पानी चढ़ाकर पीपल के पेड़ में पानी चढाते समय भगवान विष्णु जी के नाम का तीन बार जप करे।
- इसके बाद स्वर्ण या यज्ञोपवित से वामन भगवान की प्रतिमा स्थापित करे। तथा स्वर्ण के पात्र (सोने के बर्तन) में अर्घ्य दान करे।
- इसके बाद भगवान वामन (विष्णु जी) की पूरे विधि-विधान से पूजा करके फल व फूल चढ़ाकर अपना उपवास करें।
- पूजा के समय यह इस मंत्र का तीन बार उच्चारण करे-
देरेश्वराय देवश्य, देव संभूति कारिणे।
प्रभावे सर्व देवानां वामनाय नमो नम:।।
- पूजा पूरी होने के बाद अर्घ्य देते समय इस महामंत्र का जाप करे-
नमस्ये पदमनाभाय नमस्ते जल: शायिने तुभ्यमर्च्य प्रयच्छामि वाल यामन अपिणे।
नम: शांग धनुर्याण पाठये वामनाय च, यज्ञभुव फलदा त्रेच वामनाय नमो नम:।।
वामन द्वादशी पूजा की दूसरी विधि
- इसमें पूजा के दौरान वामन भगवान की स्वर्ण मूर्ति स्थापित कर उसके समक्ष 52 पेंड व 52 प्रकार की दक्षिण रखकर पूरे विधि-विधानो से पूजा करे।
- पूजा करने के बाद भगवान वामन को भोग लगाकर सकोरों में दही, चावल, चीनी, शरबत तथा यथा शक्ति रूपया ब्राह्मण को दान करे।
- वामन भगवान के नाम पर ब्राह्मण दक्षिणा दान करने के बाद व्रत का पारण करे।
- इस दिन व्रत रखने वाले सभी के द्वारा उजमन (व्रत सामाप्ति उत्सव) रखते है। उजमन में ब्राह्मणों को 1 माला, 2 गउमुखी कमण्डल, लाठी, आसन, गीता, फल, छाता, खड़ाऊॅ आदि दक्षिणा के रूप में दे।
- इस संसार में जो भी व्यक्ति वामन द्वादशी का व्रत पूरे श्रद्धा अनुसार से करता है भगवान वामन (विष्णुजी) उसकी सभी मनोकामनाए पूर्ण करते है। Vamana Vrat
वामन भगवान व्रत कथा (Vaman Vrat Katha in Hindi)
त्रेतायुग में बलि नामक राक्षक ने एक बार सभी देवताओ को युद्ध में हराकर स्वर्ग पर अपना आधिप्तय कर लिया था। इसके बाद वह देवताओ पर तरह-तरह के अतयाचार करने लगा। एक दिन सभी देवगण मिलकर देवमाता (देवताओ की मॉ) अदिति के पास गऐ और अपने ऊपर बीते रहे अत्याचारो के बारे में बताया। यह सुनकर देवमाता अपने पति ऋर्षि कश्यप के पास गयी और देवताओ की समस्या बताई।
महर्षि कश्यप ने कहा ‘हे देवी तुम भाद्रपद महीने की शुक्लपक्ष की द्वादशी का व्रत करो जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णुजी तुम्हारी खोख से जन्म लेगा। अपने पांचवे अवतारे वामन अवतार के रूप में। देवमाता आदिति ने पति महर्षि कश्यप की आज्ञा से विशेष अनुष्ठान किया। और फलस्वरूप विष्णु भगवान ने वामन ब्रह्मचारी का रूप धारण कर
राजा बलि के यहा आ गए। उस समय राजा बलि ने विशेष यज्ञ का अनुष्ठान किया था। और वामन भगवान उसी यज्ञ में जाकर शामिल हो गए।
राजा बलि ने वामन भगवान का भव्य स्वागत किया और दक्षिणा देने लगे। किन्तु वामन भगवान ने मना कर दिया कहा की हे राजन में दक्षिण में कुछ भूमि मांगना चाहता हूँ। क्योकि मेरी पास इतनी भूमि नही जहा पर मैं बैठकर भक्ति कर सकू। ब्रह्मचारी की बात सुनकर राजा बोला हे भगवन आप मांगो कितनी भूमि चाहिए।
भगवान विष्णु जी की इस माया को राजा बलि के कुल गुरू शुक्राचार्य पहचान गऐ और बलि से दक्षिणा में भूमि देने मना किया और कहा की यह सब विष्णु की माया है। ताकि तुम्हे युद्ध में तुम्हे हरा सके। किन्तु राजा बलि भक्त प्रहृलाद का पोत्र होने के साथ-साथ बडा ही दयावान था। उसके द्वार से कोई खाली हाथ नही गया। राजा बलि ने अपने राज गुरू की बात नही मानी और भूमि देने के लिए तैयार हो गए।
जिसके बाद वामन भगवान ने दक्षिणा के लिए तीन पग भूमि मांगी। राजा ने कहा हे ब्रह्मचारी आपको मेरे इस विशाल राज्य में जो स्थान अच्छा लगे वहा पर आप भूमि ले सकते है। इसके बाद वामन भगवान ने अपना विशाल रूप धारण किया और अपना पैरा उठाया। एक पैर मे ही भगवान ने पूरी पृथ्वी, दूसरे पैर स्वर्ग लोक और ब्रह्मलोक को नाप लिया।
तब वामन भगवान ने कहा हे राजन मैने तीन पग भूमि मांगी थी जिसमे मै दो पग भूमि में सब कुछ नाप लिया किन्तु अभी तीसरा पग कहा रखू। तब राजा बलि ने कहा हे भगवान आप तीसरा पैरा मेरे सिर पर रखकर अपनी दक्षिणा को पूरी किजिए। और वामन भगवान ने अपना तीसरा पैरा राजा बलि के ऊपर रखकर तीन पग भूमि प्राप्त करी।
इसके बाद भगवान अपने असली रूप में आकर राजा बलि से कहा हे राजन आज से तुम पाताल लोक के स्वामी हो। तुम वहा जाकर राज करो। राजा ने स्वीकार करते हुए कहा की हे भगवन आप भी पाताल लोक में सदैव निवास करों ताकि मुझे आपकी पूजा-अर्चना व भक्ति करने का सुख प्राप्त हो। वामन भगवान तथास्तु कहकर अर्तंध्यान हो गए।